Tuesday, March 1, 2011

चतुराई से भरा आम बजट
प्रमोद भार्Ûव
सस्ती लोकप्रि;ता से दूर ;ह इतना चतुराई से भरा आम बजट है कि इसमें उन सभी मुद्दों के मुंह मिलने की कोशिश की Ûई है, जिनके बूते कांÛ्रेस की प्रतिष्ठा तो दाव पर लÛी ही थी, संसद से सड$क तक उसकी छीछालेदर भी हो रही थी। इसलि, इसमें जहां आ;कर की सीमा बढ$ाकर बं/ाी आ; से जुड$े लोÛों को लाभ दि;ा Û;ा, वहीं Ûरीबी रेखा के दा;रे में जीवन ;ापन करने वालों को कैरोसिन, ?ारेलु Ûैस व किसानों को खाद पर सी/ाी छूट देकर उन्हें तो लुभा;ा ही Û;ा, इस सप्लाई लाइन के जरि;े भ्रष्टाचार से अर्जित काले/ान के फैलते सुरसामुख पर भी लÛाम कसी Ûई है। कृषि को लाभ का /ां/ाा बनाने के दृष्टिÛत ,क साथ ,क तीर से दो निशाने सा/ो Û, हैं। खाद्य प्रसंस्कर.ा और शीत भ.डारों से संबं/िात उपकर.ाों पर ,क्साइज ड्;ूटी ?ाटाकर व कुछ सब्सिडी देकर जहां उद्योÛ जÛत को सी/ाा मुनाफा पहंुचा;ा है, वहीं फल व सब्जि;ों के भ.डार.ा से किसानों के लाभान्वित होने की उम्मीद की जा सकती है। आंÛनवाडी कार्;कर्ताओं की तनख्वाह दोÛुनी कर, करीब 20 लाख महिलाओं को लाभ दि;ा Û;ा, वहीं वातानुकूलित अस्पतालों को मंहÛा करने के प्रस्ताव ने रोÛि;ों को खतरे में डाल दि;ा। इन लुभावने प्रस्तावों के बावजूद इस बजट में न तो बेरोजÛारी दूर करने के उपा; दिखे और न ही उन महिला और बच्चों का ख;ाल रखा, जिनकी दिहाड$ी मजदूर के रूप में असंÛठित {ो=ों में 96 फीसद भाÛीदारी है। मंहÛाई से मुक्ति के उपा;ों की भी सर्वथा अनदेखी की Ûई है। देश की आर्थिक प्रÛति को रोजÛारोन्मुखी बना, जाने की जरूरत थी। ,ेसा होता तो ;ह बजट समावेशी विकास की दिशा त; करता।
फौरी तौर से इस बजट में आम नाÛरिक से जुड$ी प्रशासनिक जटिलताओं को सरल बनाने की कोशिशें दिखाई दे रही हैं। ;ह स्थिति बहाल होती है तो ;ह बजट असमानता में कमी लाने की दृष्टि से ,क टर्निंÛ र्पोइंट भी साबित हो सकता है। Ûरीबों के कैरोसिन, ,लपीजी और खाद पर मिलने वाली छूट की राशि अब उत्पादक कंपनि;ों की बजा; सी/ो उपभोक्ता को मिलेÛी, वह भी सी/ो नकद राशि के रूप में। महाराष्ट्र में ईमानदार अ/िाकारी ;शवंत सोनव.ो की हत्;ा के बाद ,ेसी खबरों को बल मिला था कि Ûरीबों को जो छूट आ/ाारित कैरोसिन उपलब्/ा करा;ा जाता है, उसका 40 फीसदी हिस्सा तेल माफि;ा मिलावटखोरों को बेच देता है। पिछले साल के आम बजट में तेल और खाद पर मिलने वाली इस सब्सिडी की राशि 53000 करोड$ रूप;े थी। जो मौजूदा वित्ती; साल में बढ$ाकर 245 प्रतिशत कर दी Ûई थी। हालांकि कुछ Ûुलाबी हितों के पैरोकार अर्थशास्=ी चाहते थे कि इस छूट को पूरी तरह खत्म कर दि;ा जा,। लेकिन कांÛ्रेस को ,ेसा करना इसलि, भी संभव नहीं था क्;ोंकि पश्चिम बंÛाल, असम, तमिलनाडू, पांडिचेरी और केरल में जल्द चुनाव संभावित हैं।
छूट की नकद राशि सी/ो उपभोक्ता के खाते में जा, इस दृष्टि से भी बजट में कारÛर उपा;ों का प्राव/ाान है। ई-प्रशासन को विस्तारित कर जहां पारदर्शी बना, जाने पर जोर दि;ा Û;ा है वहीं बहुउप;ोÛी पहचान प= के निर्मा.ा में तीव्रता लाने का भी भरोसा जता;ा Û;ा है। नंदन नीलके.ाी अब दस लाख लोÛों को प्रतिदिन क्रमांकित (नंबरिंÛ) कर उन्हें ,क नई पहचान देकर ई-प्रशासन और ई-बैंकिÛ के लि, सुवि/ााजनक बनाकर पारदर्शिता ला,ंÛे। सामाजिक {ो= के वंचित लोÛों की मजदूरी से अर्जित ;े नि/िा;ां सुर{िात होती हैं तो महात्मा Ûां/ाी रोजÛार Ûारंटी ;ोजना में काम करने वाले Ûरीबों के रोटी के हक को भी मजबूती मिलेÛी। क्;ोंकि जिस तरह से पहचान-प= बनाने का दावा कि;ा Û;ा है, उसके चलते ,क साल में 36 करोड$ पहचान प= लोÛों को वितरित कर दि, जा,ंÛे और आÛामी तीन सालों में ;ह कार्; पूरा हो जा,Ûा।
किसानों को कर्ज में छूट तो दी Ûई है लेकिन वे कर्ज से हमेशा के लि, मुक्त हो जा,ं ,ेसे ठोस उपा; नहीं सुझा;े Û, हैं। अब किसानों को 7 फीसदी ब्;ाज की दर से कर्ज मिलेÛा, साथ ही जो किसान सम; पर -.ा चुका,ंÛे उन्हें ,क प्रतिशत ब्;ाज की राहत अतिरिक्त मिलेÛी, लेकिन ;ह राहत छलावा भर है क्;ोंकि प्रकृति की मार के साथ नकली खाद व बीजों की मार भी किसानों को झेलनी पड$ रही है। इसलि, सम; पर कर्ज चुकाने में किसान आने वाले कुछ सालों में स{ाम हो जा,ंÛे, ,ेसा लÛता नहीं ? किसान ;ा देश का वंचित तबका खाती-पीती स्थिति में आ जा,Ûा ,ेसा भी इस बजट में लÛता नहीं है। क्;ोंकि लोक कल्;ा.ाकारी ;ोजनाओं अथवा विकासवादी अ/ाोसरंचना के लि, कुल 10,000 करोड$ रूप;े की वृ)ि की Ûई है। चूंकि बढ$ती मंहÛाई पर किसी भी दशा में अंकुश लÛता दिखाई नहीं दे रहा है इसलि, ,ेसे हालात में ;ह बजट-वृ)ि मूल रूप मंे सिर्फ अर्थ-समा;ोजन का काम करेÛी। मंहÛाई पर काबू पाना फिलहाल इसलि, भी संभव नहीं है क्;ोंकि तेल उत्पादक अरब और अफ्रीकी देशों में राजनीतिक बदलाव का दौर चल रहा है। इस कार.ा इन देशों में अनिश्चिता की स्थिति बनी हुई है और प्रशासनिक व्;वस्था ठप है। कृषि बजट को 20 फीसदी बढ$ाने का दावा तो कि;ा Û;ा है, लेकिन ;ह विपुल /ान राशि कहां से उत्सर्जित की जा,Ûी इसका कोई खुलासा नहीं है। हां कर्ज की ब्;ाज दरें ?ाटाकर किसानों में कर्ज का प्रवाह जरूर बढ$ाने की कोशिश की Ûई है, जो किसानों को बदहाल बनाने का ही काम करेÛी
आ;कर सीमा में छूट देकर वित्त मं=ी ने वेतनभोÛि;ों का ख;ाल रखा है। ,ेसा इसलि, भी जरूरी था क्;ोंकि केंद्र की ;ूपी, सरकार को चुनावी जंÛ में जाना है। हालांकि आ; सीमा ,क लाख 60 हजार से बढ$ाकर महज ,क लाख 80 हजार की Ûई है। इस उपा; से इस आ; में करीब 2020 रूप;े का लाभ होÛा। लेकिन वरिष्ठ नाÛरिकों को लाभ देने के बहाने भी सेवानिवृत्त कर्मचारि;ों को लाभ दि;ा Û;ा है। इस नजरि;े से ,क तो लाभ की उम्र 65 से 60 कर दी Ûई, वहीं दूसरी तरफ जो 80 साल से ऊपर की उम्र के लोÛ हैं वे 5 लाख की आमदनी होने पर भी कर सीमा में नहीं आ,ंÛे। जाहिर है इस नीति-निर्/ाार.ा से जो उच्च पदों की सेवाओं से मुक्त हु, हैं, उन्हें ही ज्;ादा लाभ मिलने वाला है। छोटे, मझोले व खुदरा व्;ापारी और किसान तो इस उम्र तक बमुश्किल ही पहुंचते हैं।
शे;र बाजार में बजट आने के साथ ही जो उछाल आ;ा है और उद्योÛ जÛत की जिस तरह से प्रसन्न मुद्रा में प्रतिक्रि;ा मिल रही है उससे जाहिर है बजट कार्पोरेट जÛत के लि, हितकारी है। वातानुकूलित उपकर.ाों मंे छूट की दृष्टि से जो 300 करोड$ का प्राव/ाान है, उससे उद्योÛ जÛत की माली हालत में इजाफा होÛा। ,क्साइज ड्;ूटी और कार्पोरेट टेक्स में भी कोई वृ)ि नहीं की Ûई। बैंकों के कर्ज प्राव/ाान भी 3-75 लाख हजार करोड$ से बढ$ाकर 4-75 लाख हजार करोड$ कर दि, Û, हैं। आर्थिक और कृषि संबं/ाी सु/ाारों के बहाने ;ह राशि उद्योÛपति;ों को मिलने जा रही है। कंेंद्र सरकार कि लि, ;े प्राव/ाान इसलि, भी जरूरी थे क्;ोंकि वह भारत की उभरती हुई महाशक्ति की आकां{ाा की बुनि;ाद को मजबूती देना चाहती है।
प्र.ाव मुखर्जी ने शि{ाा सु/ाारों को भी महत्व दि;ा है। सर्वशि{ाा अभि;ान का बजट 24 फीसदी बढ$ा;ा Û;ा है और ‘शि{ाा के अ/िाकार’ को लाÛू करने के लि, 40 फसदी /ान राशि मुहै;ा कराई Ûई है। लेकिन प्राथमिक और मा/;मिक शि{ाा में विसंÛति ;ह है कि अब दूरदराजों के Û्रामों तक शि{ाा का बुनि;ादी ढांचा तो कमोबेश खड$ा हो Û;ा, परंतु शि{ाक की पहंुच पाठशाला में सुनिश्चित हो और शि{ाा में Ûु.ावत्ता आ, इस लिहाज से सरकार की कोई इच्छाशक्ति देखने में नहीं आ रही है ?
इस बजट को ठीक-ठाक तो माना जा सकता है लेकिन ;ह न संतुलित बजट है और न ही समावेशी। ;ह कारÛर बजट तब होता जब राजस्व को बढ$ाकर और खर्चाें को कम कर राजकोषी; ?ााटे को सकल ?ारेलु उत्पाद के 4-8 फीसद स्तर पर रखने के ल{; को हासिल करता।

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